Iran Thanks India: इसराइल और ईरान के बीच 12 दिनों तक चला धमाकेदार युद्ध आखिरकार समाप्त हो गया है।इन दोनों के बीच समझौता करने में अहम भूमिका अमेरिका ने निभाई भले ही युद्ध रुक गया हो पर, इस संघर्ष की गूंज भारत तक सुनाई दी जहां एक तरफ ईरान ने भारत की जनता का हृदय से धन्यवाद किया वहीं दूसरी ओर इसराइल ने अपने सैनिक व रणनीतिक विजय का दावा करते हुए भारत का जिक्र तक नहीं किया है।
ईरान ने भारत को कहां शुक्रिया
दिल्ली में स्थित ईरानी दूतावास ने बुधवार को एक विस्तार पूर्वक बयान में कहा की हम भारत के लोगों को शुक्रिया करना चाहते हैं। जिन्होंने ईरान की जनता, जब सैनिक आक्रमण झेल रही थी। तब भारत से मिला नैतिक समर्थन और एकजुटता हमारे लिए एक दीपक की तरह था।
ईरानी दूतावास ने अपने बयान में यह भी कहा कि हम भारत के राजनीतिक दलों, मीडिया, आध्यात्मिक नेताओं और आम नागरिकों को विशेष रूप से धन्यवाद देना चाहते हैं। क्योंकि उन्होंने मुश्किल की इस घड़ी में ईरान का पूरा साथ दिया उन्होंने इसे भारत की जागरूक अंतरात्मा और न्यायप्रियता का प्रतीक भी बताया।
इसराइल ने नहीं लिया भारत का नाम
इसी बीच इजरायल के विदेश मंत्रालय ने सीज फायर की पुष्टि करते हुए कहा कि युद्ध में उसने अपने सभी लक्षण को हासिल कर लिया है। जिसे उन्होंने युद्ध स्टार्ट करने से पहले चिन्हित किया था।
ईरान के सैकड़ो आतंकवादियों का सफाया परमाणु और बैलिस्टिक हमले को नाकाम करना और खुद को विश्व की अग्रणी सैन्य शक्तियों में स्थापित करना था जिसे उन्होंने हासिल किया है।
भारत की नई कूटनीतिक पहचान
12 दिन तक चले इस भीषण युद्ध में भारत ने किसी भी एक पक्ष का खुला समर्थन नहीं किया। लेकिन दोनों देशों में उसका प्रभाव स्पष्ट दिखाई दिया जहां ईरान ने भारत को संवेदनशील समर्थन के लिए सराहा। वहीं भारत ने वैश्विक मंच पर नैतिक नेतृत्व का परिचय दिया बिना किसी पक्ष को नाराज किए हुए। जहां तक विश्लेषको का मानना है कि भारत अब सिर्फ एक क्षेत्रीय शक्ति नहीं बल्कि नैतिक और कूटनीतिक संतुलन का प्रतीक भी बन गया है, इस पूरे युद्ध में चीन और रसिया के अलावा ईरान का खुला समर्थन करने वाला कोई भी देश नहीं था शिवाय भारत के मूक समर्थन करने के अलावा।
भारत की छवि तटस्थता नही
इस पूरे घटनाक्रम में भारत की पारंपरिक गुटनिरपेक्ष नीति को एक नए रूप में प्रस्तुत किया है। यह अब केवल तटस्थता नहीं बल्कि नैतिक नेतृत्व की भूमिका में परिवर्तित हो चुका है। जहां भारत ना तो किसी पक्ष का समर्थन करता है। ना विरोध लेकिन संकट में संवेदनशीलता और विवेक से खड़ा दिखाई देता है। यही वजह है कि ईरान जैसे कट्टरपंथी राष्ट्र ने भी भारत को खुलेआम धन्यवाद देने में कोई संकोच नहीं किया है।
अमेरिका और चीन पर नजर
अंतरराष्ट्रीय मंच पर इस युद्ध विराम पर कई प्रतिक्रियाएं आ रही है। अमेरिका और उसके सहयोगी इजरायल के दावे को रणनीतिक सफलता मार रहे हैं। वहीं चीन और रूस की चुप्पी रणनीतिक रूप से अर्थपूर्ण मानी जा रही है। इस बीच भारत की स्थिति को विश्लेषकों ने एक सॉफ्ट पावर और सुपर पावर की तरह देखा। जो बंदूकन के बजाय सहिष्णुता और सम्मान की भाषा बोलता है। जिसकी बात को अब विश्व मंच पर गंभीरता से सुना जा रहा है।
आगे भारत को क्या करना चाहिए
इस सीज फायर ने युद्ध को बीराम भले दे दिया हो लेकिन मध्य पूर्व में तनाव अभी भी जीवित है। भारत के सामने यह अवसर है। कि वह इस स्थिति को राजनीतिक पहल में बदले चाहे वह मानव अधिकारों की वकालत हो या संयुक्त राष्ट्र के मंच पर शांति वार्ता को मजबूती देना। वही यह क्षण हो सकता है। जब भारत न केवल एक बड़ी अर्थव्यवस्था बल्कि एक अंतरराष्ट्रीय नैतिक मार्गदर्शन के रूप में अपनी स्थिति को मजबूत कर सकता है।
अब इसमें देखने वाली बात है कि यह शांति कितने दिनों तक रहती है।अगर दोनों पक्ष संयम बरते, तो पूरी दुनिया को उम्मीद है कि अब आने वाले दिनों में कोई लड़ाई झगड़ा नहीं होगा इन दोनों के बीच में।
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