उठते सवाल क्या रूस वाकई ईरान का भरोसेमंद सहयोगी है
ईरान को लगता है। कि रूस केवल कूटनीतिक बयानों और सीमित सहयोग तक ही सीमित हो रहा है। जबकि अमेरिका और इजरायल के खिलाफ लड़ाई में ईरान को रूस की खुली मदद चाहिए। अमेरिका और इस्राइल ने जमीन पर हमला करके अपनी मंशा जाहिर कर दी है। खोमेनेई का जो पत्र पुतिन को सोपा गया है इसमे नाराजगी और अपेक्षा का प्रतिबिंब लगता है। जब से ईरान के विदेश मंत्री रुस गए हैं। तब से पूरी दुनिया की निगाहें रूस के अगले कदम पर टिकी हुई है कि रसिया इस पर अब क्या फैसला लेता है।
ईरान का बढ़ता अकेलापन और बेचैनी
ईरान के लिए यह एक महत्वपूर्ण चुनौती है। कि जब अमेरिका उसकी सैनिक और परमाणु क्षमता को निशाना बना रहा है। तब उसका सबसे बड़ा रणनीतिक साझेदार रुस भी स्पष्ट समर्थन देने से हिचक रहा है। यह बताता है,कि क्षेत्रीय राजनीति में दोस्ती स्थाई नहीं होती यह सिर्फ कहने वाली बात है और स्थिति के ऊपर डिपेंड करती है। रूस की यह कूटनीति ईरान के लिए खतरे की घंटी हो सकती है। वह अब यह सोचने पर मजबूर है कि क्या वह सही समय पर सही जगह से मदद मांग रहा है या नहीं क्योंकि रूस के अलावा इस समय पूरे वर्ल्ड में ईरान की सहायता करने वाला कोई नहीं है शिवाय रसिया के।
मध्य पूर्व की बिगड़ती स्थिति
अमेरिका और इजरायल की कार्रवाई के बाद मध्य पूर्व में ध्रुवीकरण तेज हो गया है। एक ओर ईरान है जो अपने वजूद और संप्रभुता की रक्षा के लिए प्रतिरोध की मुद्रा में है। तो दूसरी ओर अमेरिका और उसके पश्चिमी सहयोगी है। जो इसे एक प्रमाणू खतरे के तौर पर पेश कर रहे हैं। इसी बीच सऊदी अरब जैसे क्षेत्रीय शक्तियां भी सतर्क रूप से स्थिति पर न जाए बनाए हुए है। की रूस यदि खुलकर ईरान के पक्ष में आता है। तो यह ध्रुवीकरण और भी गहरा हो सकता है।
रूस की क्या है मजबूरी
रूस की स्थिति जटिल है। वह सीरिया युद्ध में पहले से ही संसाधन और सैनिक झोक चुका है। साथ ही वह यूक्रेन संघर्ष के बाद पश्चिमी प्रतिबंधों के बोझ तले दबा है। पुतिन फिलहाल अपने हित साधने के लिए लो प्रोफाइल नीति अपना रहे हैं। जहां वे ना तो अमेरिका से रिश्ते बिगाड़ना चाहते हैं। और ना हीं ईरान को पूरी तरह नाराज करना चाहता हैं। यही कारण है कि वह इजरायल के हमले की निंदा तो करता हैं, लेकिन अमेरिकी हमलो पर चुप्पी साधे रहता हैं। आने वाले कुछ हफ्तों में रूस की स्थिति स्पष्ट हो जाएगी कि वह ईरान की खुलकर मदद करता है या बस खाली निंदा करके ही बचना चाहता है।
ईरान के लिए भविष्य की रणनीति
ईरान अब अपने पारंपरिक सहयोगी की भूमिका पर पुनर्विचार कर रहा है। यह दौरा सिर्फ समर्थन लेने की कोशिश नहीं बल्कि यह संकेत भी है कि अगर रूस जैसे देश निर्णायक नहीं हुई तो ईरान अपनी रणनीति को और ज्यादा आत्मनिर्भर और आक्रामक बना सकता है। भविष्य में यह उसी चीज या अन्य उभरती शक्तियों की ओर मोड़ सकती है। जो अमेरिका से संतुलन बनाना चाहते हैं। लेकिन रूस इस क्षेत्र में अमेरिका के बाद दूसरा सबसे बड़ा खिलाड़ी है। और इसको इनकार नहीं किया जा सकता है चाहे वह ईरान हो सऊदी हो और या और कोई मध्य पूर्व के देश रूस को नजर अंदाज करना मुश्किल है। लेकिन देखने वाली बात अब यह है कि ईरान रूस के बाद क्या चीन से भी मदद मांगता है या नहीं क्योंकि चीन ने अभी तक सिर्फ निंदा के अलावा और कुछ भी नहीं कहा है अमेरिका और इजरायल के बारे में और उसने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं। इसलिए इस युद्ध में आने वाला समय बहुत ही महत्वपूर्ण है। ईरान और इसराइल दोनों ही देशों के लिए।
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