Pakistan pm Speech: पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ ने ताजिकिस्तान के दौरे पर एक चौंकाने वाला बयान दिया है। उन्होंने इसराइल-गाज़ा संघर्ष की तुलना भारत-पाकिस्तान के बीच सिंधु जल विवाद से करते हुए कहा कि भारत, सिंधु जल समझौते को "हथियार" की तरह इस्तेमाल कर रहा है और यह व्यवहार “खतरनाक स्तर” तक पहुंच गया है। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार इसराइल गाज़ा में न केवल सैन्य ताकत, बल्कि मानवता पर भी वार कर रहा है, उसी तरह भारत द्वारा पानी को नियंत्रण में लेना भी एक तरह का "जल आतंकवाद" है।
यह बयान ऐसे समय पर आया है जब भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल समझौते (Indus Waters Treaty – IWT) को लेकर तनाव बना हुआ है। पाकिस्तान के प्रतिष्ठित अखबार 'डॉन' में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, प्रधानमंत्री शरीफ ने भारत पर आरोप लगाया कि वह 1960 में हुए समझौते को तोड़ने की दिशा में अग्रसर है और पानी को एक रणनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहा है।
गाज़ा संघर्ष का उल्लेख और भारत पर कटाक्ष
शहबाज़ शरीफ ने अपने भाषण में इसराइल-गाज़ा संघर्ष का जिक्र करते हुए कहा, “हम गाज़ा में जो हो रहा है, उस पर शोक व्यक्त करते हैं। वहां लोगों की प्यास बुझाने के लिए पानी नहीं है, दवाएं नहीं हैं, और निर्दोष लोग मारे जा रहे हैं। लेकिन हमारे पड़ोस में भी एक समान संकट जन्म ले रहा है – भारत द्वारा पानी को हथियार बनाकर इस्तेमाल करने की कोशिश की जा रही है। यह भी एक प्रकार का 'जल आतंकवाद' है।”
उनका यह बयान दोनों संकटों की तुलना करते हुए भारत को निशाने पर लेने का एक राजनीतिक प्रयास माना जा रहा है। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपील की कि वे सिंधु जल विवाद में हस्तक्षेप करें और भारत को 1960 के ऐतिहासिक समझौते का पालन करने के लिए मजबूर करें।
सिंधु जल समझौते पर सवाल
शरीफ ने अपने बयान में कहा, “1960 में पाकिस्तान और भारत के बीच सिंधु जल संधि विश्व बैंक की मध्यस्थता में हुई थी। यह एक ऐतिहासिक समझौता था, जिसमें यह तय हुआ था कि रावी, सतलुज और ब्यास नदियों का जल भारत को मिलेगा जबकि सिंधु, झेलम और चेनाब का जल पाकिस्तान को। इस समझौते ने दशकों तक दोनों देशों के बीच जल विवाद को शांत रखा, लेकिन अब भारत इस संतुलन को तोड़ने की कोशिश कर रहा है।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि पाकिस्तान को कई बार बिना पूर्व सूचना के जल प्रवाह में परिवर्तन झेलना पड़ा है, जिससे वहां की कृषि, जल आपूर्ति और ऊर्जा उत्पादन पर गंभीर प्रभाव पड़ा है।
“भारत कर रहा है जल को हथियार की तरह इस्तेमाल” – डॉन की रिपोर्ट
पाकिस्तान के प्रमुख अंग्रेज़ी अखबार ‘डॉन’ ने इस संबंध में एक विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने बीते कुछ वर्षों में उत्तरी भारत में ऐसे कई जल परियोजनाओं की शुरुआत की है जिनसे झेलम और चेनाब नदी पर दबाव बढ़ता जा रहा है।
डॉन ने यह भी आरोप लगाया कि भारत जल पर नियंत्रण को “रणनीतिक दबाव” के रूप में प्रयोग कर रहा है ताकि पाकिस्तान की कृषि व्यवस्था को प्रभावित किया जा सके। इसमें यह भी लिखा गया है कि भारत जल प्रवाह को सीमित करके “प्राकृतिक संसाधनों के जरिये भू-राजनीतिक दबाव” बना रहा है।
आतंकवाद पर चुप्पी और दोहरा मापदंड?
विश्लेषकों और राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि शरीफ का यह बयान भारत पर नैतिक और अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाने की एक कोशिश है। लेकिन इसके साथ ही यह भी देखा जा रहा है कि उन्होंने पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद पर कोई टिप्पणी नहीं की, विशेषकर हाल ही में पहलगाम में हुए आतंकी हमले को लेकर।
भारत के सुरक्षा अधिकारियों ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि शरीफ का बयान “दोहरे मापदंड” का परिचायक है। एक ओर वह जल संकट की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा चाहते हैं, लेकिन दूसरी ओर अपनी धरती से पनप रहे आतंकवाद पर चुप्पी साध लेते हैं।
पाकिस्तान में घरेलू राजनीति का असर?
राजनीतिक विश्लेषकों का यह भी मानना है कि शरीफ का यह बयान घरेलू राजनीति से प्रेरित है। पाकिस्तान में आर्थिक संकट, राजनीतिक अस्थिरता और महंगाई की मार झेल रही जनता के बीच सिंधु जल विवाद को एक “राष्ट्रवादी एजेंडा” की तरह उठाना शरीफ के लिए एक राजनीतिक हथियार हो सकता है।
कई विपक्षी दलों ने शरीफ के इस बयान पर सवाल उठाया है कि क्या यह वास्तव में जल संकट को हल करने का प्रयास है या सिर्फ राजनीतिक लाभ कमाने की कोशिश?
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
हालांकि अभी तक किसी बड़े अंतरराष्ट्रीय संगठन या देश ने शरीफ के बयान पर प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन यह बात स्पष्ट है कि भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि को लेकर तनाव बढ़ रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह विवाद आगे बढ़ा तो यह न केवल दक्षिण एशिया की स्थिरता के लिए खतरा बन सकता है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी इसका प्रभाव दिखेगा।
विशेषज्ञ और पर्यावरणविद यह चेतावनी दे चुके हैं कि जल संकट 21वीं सदी की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक होगा। ऐसे में भारत और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों को जल संसाधनों को लेकर सहयोग की आवश्यकता है, न कि टकराव की।
भारत की प्रतिक्रिया?
भारत सरकार ने औपचारिक रूप से शरीफ के बयान पर कोई टिप्पणी नहीं की है, लेकिन विदेश मंत्रालय के सूत्रों ने इशारा किया है कि यह बयान “राजनीतिक प्रोपेगैंडा” से अधिक कुछ नहीं है। भारत पहले ही कई मंचों पर यह स्पष्ट कर चुका है कि वह सिंधु जल संधि का पालन कर रहा है और किसी भी बदलाव की प्रक्रिया में उचित सूचना पाकिस्तान को दी जाती है।
भारत यह भी कहता रहा है कि वह पाकिस्तान के आतंकी गतिविधियों को नजरअंदाज नहीं कर सकता, और जब तक आतंकवाद को समर्थन मिलता रहेगा, तब तक द्विपक्षीय संबंधों में विश्वास की कमी बनी रहेगी।
निष्कर्ष
प्रधानमंत्री शरीफ द्वारा गाज़ा संकट की तुलना सिंधु जल विवाद से करना एक राजनीतिक दृष्टिकोण से देखा जा सकता है, लेकिन इससे भारत-पाकिस्तान संबंधों में और भी तनाव बढ़ने की आशंका है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय को चाहिए कि वह इस संवेदनशील मुद्दे पर संतुलित दृष्टिकोण अपनाए और दोनों देशों को जल सहयोग की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित करे।
भारत और पाकिस्तान दोनों ही जलवायु परिवर्तन, जनसंख्या वृद्धि और जल संसाधनों की सीमितता से जूझ रहे हैं। ऐसे में अगर दोनों देश आपसी संवाद और समझौते के रास्ते पर नहीं लौटते, तो आने वाले वर्षों में जल संकट एक नए संघर्ष की भूमिका निभा सकता है।
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