IPL 2025: आईपीएल 2025 के आखिरी लीग मुकाबले में रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु (आरसीबी) और लखनऊ सुपर जायंट्स (एलएसजी) के बीच खेले गए मुकाबले ने क्रिकेट प्रेमियों को रोमांच से भर दिया। लेकिन इस मैच के बाद जो चर्चा सबसे अधिक हो रही है, वह है एक ‘मांकडिंग’ की घटना, जिसमें एलएसजी के कप्तान ऋषभ पंत ने खेल भावना का अद्भुत उदाहरण पेश किया।
मैच लखनऊ के इकाना स्टेडियम में खेला गया, जहां टॉस जीतकर आरसीबी ने पहले गेंदबाज़ी का फैसला लिया। एलएसजी की तरफ से कप्तान ऋषभ पंत ने विस्फोटक बल्लेबाज़ी करते हुए 61 गेंदों में 118 रनों की नाबाद पारी खेली और टीम को 227 रन तक पहुंचाया।
हालांकि, पारी का सबसे चर्चित क्षण आया 17वें ओवर में, जब गेंदबाज दिग्वेश सिंह राठी ने नॉन-स्ट्राइकर एंड पर खड़े जितेश शर्मा को गेंद फेंकने से पहले ही क्रीज से बाहर पाए जाने पर रन आउट कर दिया। यह 'मांकडिंग' की स्थिति थी, जिसे लेकर क्रिकेट जगत में हमेशा से बहस होती रही है।
मैदानी अंपायर ने इसे वैध आउट माना, लेकिन कप्तान पंत ने खेल भावना दिखाते हुए तुरंत अपील वापस ले ली और जितेश शर्मा को वापस बल्लेबाज़ी के लिए बुला लिया। यह फैसला क्रिकेट प्रेमियों के लिए एक सम्मानजनक क्षण था, लेकिन कुछ पूर्व खिलाड़ियों को यह रास नहीं आया।
युवा क्रिकेटर्स के लिए प्रेरणा:
ऋषभ पंत का यह फैसला युवा खिलाड़ियों के लिए एक मिसाल बनकर उभरा है। आज की पीढ़ी जहां अधिकतर प्रदर्शन और आँकड़ों पर केंद्रित है, वहाँ ऐसे फैसले उन्हें यह सिखाते हैं कि एक अच्छा खिलाड़ी बनने से ज़्यादा ज़रूरी है एक अच्छा इंसान और जिम्मेदार कप्तान बनना। जब खेल के मंच पर नैतिकता को प्राथमिकता दी जाती है, तो यह न केवल दर्शकों का भरोसा जीतता है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के व्यवहार और सोच को भी आकार देता है।
क्रिकेट में संतुलन की आवश्यकता:
क्रिकेट जैसे खेल में जहां नियमों की सख्ती और तकनीकीता बढ़ती जा रही है, वहाँ मानवीय पहलू और खेल भावना का स्थान बनाए रखना एक चुनौती बन चुका है। पंत के निर्णय ने यह दर्शाया कि खेल भावना और प्रतिस्पर्धा के बीच संतुलन बनाए रखना ही असली नेतृत्व की पहचान है। यदि कप्तान अपने निर्णयों से टीम और खेल दोनों का स्तर ऊँचा कर सके, तो वही सच्चे लीडरशिप का प्रतीक बनता है।
भारत के अनुभवी स्पिनर रविचंद्रन अश्विन, जो ‘मांकडिंग’ के पक्षधर माने जाते हैं, ने इस फैसले की आलोचना करते हुए कहा, “यह गेंदबाज के आत्मसम्मान के खिलाफ है। जब खिलाड़ी नियम के तहत आउट होता है, और कप्तान अपील वापस ले लेता है, तो यह गेंदबाज के मनोबल पर असर डालता है। यह एक टीम गेम है, सिर्फ खेल भावना दिखाने के लिए किसी एक खिलाड़ी का बलिदान नहीं किया जा सकता।”
अश्विन के इस बयान ने क्रिकेट जगत को दो हिस्सों में बांट दिया – एक पक्ष पंत के फैसले की सराहना कर रहा है, वहीं दूसरा पक्ष मानता है कि नियम के अनुसार आउट देना ही सही होता।
दूसरी ओर, आरसीबी की बल्लेबाज़ी ने इस मैच को और भी दिलचस्प बना दिया। लक्ष्य का पीछा करने उतरी आरसीबी की शुरुआत खराब रही, लेकिन मध्यक्रम में बल्लेबाज़ी कर रहे जितेश शर्मा ने अंत में तूफानी पारी खेलकर मैच का रुख बदल दिया। उन्होंने 33 गेंदों में नाबाद 85 रन बनाए और टीम को अंतिम ओवर में 6 विकेट से जीत दिलाई।
मैच के बाद, पंत की कप्तानी पर एक और बुरा असर पड़ा। धीमी ओवर गति के कारण उन पर ₹30 लाख का जुर्माना लगाया गया और टीम के अन्य खिलाड़ियों पर ₹12 लाख का जुर्माना लगाया गया।
यह मुकाबला न केवल स्कोरबोर्ड के लिहाज़ से, बल्कि नैतिकता, खेल भावना और नियमों की व्याख्या के लिहाज़ से भी यादगार बन गया। पंत के इस निर्णय से यह बात साबित होती है कि खेल केवल रन और विकेट का खेल नहीं है, बल्कि यह मूल्यों और निर्णयों का भी खेल है।
इस घटना ने युवा खिलाड़ियों और कप्तानों के लिए भी एक बड़ा संदेश दिया है कि खेल में जीत से बढ़कर खेल भावना का महत्व होता है। टीम की एकता और सम्मान से ही लंबे समय तक सफलता हासिल की जा सकती है। ऐसे फैसले जो केवल नियमों तक सीमित न रहकर खेल के नैतिक पक्ष को भी सशक्त बनाते हैं, वे खेल को एक नई दिशा प्रदान करते हैं।
आईपीएल जैसे मंच पर जहां प्रतिस्पर्धा अत्यंत कड़ी होती है, वहाँ इस तरह के उदाहरण खेल के प्रति सम्मान और खेल भावना को बढ़ावा देते हैं। इससे खिलाड़ियों के बीच आत्मविश्वास और पारस्परिक सम्मान भी बढ़ता है, जो अंततः खेल के स्तर को ऊंचा करता है और दर्शकों को भी प्रेरित करता है।
आईपीएल जैसे बड़े मंच पर जहां हर रन मायने रखता है, वहां एक कप्तान द्वारा मांकडिंग की अपील वापस लेना एक साहसी और प्रेरणादायक कदम माना जा सकता है। लेकिन अश्विन जैसे दिग्गजों की आपत्ति यह भी दिखाती है कि खेल भावना और जीत की चाह के बीच की रेखा कितनी पतली है।
इस जीत के साथ ही आरसीबी ने अंक तालिका में दूसरा स्थान प्राप्त किया और क्वालिफायर में पंजाब किंग्स से भिड़ेगी, वहीं एलएसजी को अब एलिमिनेटर में मुकाबला खेलना होगा।
कुल मिलाकर, यह मुकाबला सिर्फ एक खेल नहीं था, बल्कि एक सीख भी थी — कि खेल भावना और नियम दोनों का संतुलन बनाना कितना आवश्यक है।
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